Thursday, October 28, 2010

स्वागत है अंग्रेज़ी की क्लास में ...

प्रिय मित्रों,
अवतार मेहेर बाबा की जय, 
आज के परिवेश में अंग्रेज़ी का महत्व बढ़ता ही जा रहा है, इस बात से शायद आप सभी सहमत होंगे. यदि हम अपने आस-पास के चन्द सफल लोगों में से उनकी अच्छी आदतों का अध्ययन करें तो पायेंगे की सभी लोगों की पकड़ अंग्रेज़ी भाषा पर बहुत अच्छी है. शायद अंग्रेज़ी सफलता का अकेला पैमाना तो न हो किंतु कई पैमानों में से एक ज़रूर हो सकता है.
इसके अलावा, जैसाकि प्रसिद्ध पुस्तक "वर्ड पॉवर मेड ईज़ी" के लेखक नॉर्मन लुईस कहते हैं कि प्रत्येक शब्द एक नये विचार का वाहक है. यदि इस बात को हम सही समझें तो नई भाषा के नये-नये शब्द हमारा परिचय नये विचारों से कराते हैं जो कि ज्ञान वर्धन का कार्य करता है. ज्ञान ही कौशल वृद्धि का माध्यम बनता है और कौशल ही हमें सफलता का द्वार दिखाती है.
तो क्या हमें अंग्रेज़ी सीखने से फायदा हो सकता है ? बेशक !!! इस भाषा को हम सीख भी सकते हैं. इसी उद्देश्य से ही इस ब्लॉग के सृजन का विचार उत्पन्न हुआ. यहाँ एक बार में एक अध्याय को पढ़ें और सीखें. प्रत्येक अध्याय के सथ दिये गये निर्देशों का पालन करने का प्रयास करें. जहाँ आपके चर्चा की अवश्यकता लगे आप निःसंकोच भाव से हमें ई-मेल लिखें. हम पूरी कोशिश करेंगे कि आपके प्रश्नों का जवाब दे पायें...
शुभकामनाओं सहित
आपका ही
चन्दर मेहेर   

8 comments:

संगीता पुरी said...

इस नए और सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

Dinesh Saroj said...

"प्रत्येक शब्द एक नये विचार का वाहक है..."

सही कहा है...
आपके लेखों का इंतजार रहेगा...
ज्ञान यूँ ही बाँटते रहिये...

Patali-The-Village said...

सही कहा है...इंतजार रहेगा...

Anonymous said...

जै बाबा की,

बहुत अच्‍छा विषय है। यह सच है कि हिंदी हमारी मातृभाषा तो है लेकिन अंग्रेजी भाषा ज्ञान के महत्‍व को हम नकार नहीं सकते। अंग्रेजी ज्ञान हमारी सफलता में एक महत्‍वपूर्ण भूमिका अदा करता है। अत: आपका ब्‍लॉग अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण और समसामयिक है। हम जैसे अनेक हिंदीभाषियों को अपनी भाषा में व्‍यावहारिक अंग्रेजी सिखाने का आपका प्रयास निस्‍संदेह प्रशंसनीय है। आपके ब्‍लॉग को हम सब्‍सक्राइब कर लेते हैं।

अभी हाल ही में सितंबर माह बीता है, हिंदी सप्ताह/पखवाड़ा/माह की खुमारी ठीक से उतरी नहीं है। हमारा "हिंदी प्रेम" किस मुकाम पर जाकर "अंग्रेजी घृणा" में बदल जाता है पता ही नहीं चलता। बाजारवाद, उपभोक्‍तावाद, संस्‍कृति का पतन, बुजुर्गों/परंपराओं की अवमानना, संस्‍कृति का भ्रष्ट होना, नैतिक पतन, राष्‍ट्र द्रोह जैसे बड़े-बड़े इल्‍जाम अंग्रेजी के साथ स्‍वत: आ जाते हैं। इतना ही नहीं ग्‍लोबल वार्मिंग, कार्बन उत्‍सर्जन, साम्राज्‍यवाद, प्रदूषण और महाप्रलय तक का जिम्‍मेदार कहीं न कहीं से अंग्रेजी को ठहराया जाता है। मजे की बात है कि हम अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजियत में अंतर नहीं कर पाते। अपनी-अपनी सुविधा के लिए मुद्दों को मिक्‍स करते हैं। इसके लिए एक बहुत बढ़‍िया शब्‍द है "बौद्धिक जुगाली करना"। तो फिलहाल इन बातों को अगले सितंबर के लिए स्‍थगित कर देते हैं।

सच तो यह है कि आज भी लगता है कि काश! अंग्रेज़ी में हाथ तंग न होता, तो शायद हम व्‍यावसायिक रूप से अधिक सफल होते। इस स्‍वीकारोक्ति के लिए बहुत हिम्‍मत, ईमानदारी और सहजता चाहिए। आपने इसे समझा और इसपर पहल की। इसी नाते इस ब्‍लॉग का महत्‍व और भी बढ़ जाता है। आशा है आप इस प्रयास को जारी रखेंगे।

- आनंद

कृषि समाधान said...

शुक्रिया आप सभी को....जल्द ही इस कड़ी में अगला लेख प्रतुत होगा...आशा है इसी तरह आपकी हौसला अफज़ाई जारी रहेगी....

आपका ही सदैव्
चन्दर मेहेर

बिग बॉस said...

आभार आपका मेरे ब्लॉग पर आने के लिए .....
आपकी सहायता करके मुझे ख़ुशी होगी
में कल आपके प्रशन का जवाब दूंगा

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

Sunder Prayas,bahut hi prabhavi lekhan hetu shubhkamnayen,lagta hai jaldi hi aapkey aaney ki jaroorat hai hamey.sader,
dr.bhoopendra

Chandar Meher said...

शुक्रिया भूपेन्द्र सर हम आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं...